12.8.10

उस्ताद शायर पुरुषोत्तम "यकीन" की शायरी: दस

उस्ताद शायर पुरुषोत्तम "यकीन" की शायरी: दस: "महनत करना ज़िम्मा तेरा, ऎसा क्यूं ऎशपरस्ती उस का हिस्सा, ऎसा क्यूं बरसों पहले देश का नक्शा बदला था अपना घर वैसे का वैसा, ऎसा क्यूं मेरे ..."

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