विकल्प
पहली घटना-
-बेटा, बहू को भी अपने साथ ले जा। शादी ब्याह में साथ जाओ तो अच्छा लगता है।
-मगर पिताजी। आपकी देखभाल कौन करेगा? वैसे भी दोस्त की बहिन की शादी है। मैं ही चला जाता हूं।
-अरे बेटा। हम इतने भी बूढ़े नहीं हुए कि देखभाल की जरूरत पड़े। तू बहू को ले जा। मां ने कहा।
- मैं अनपढ, गंवार और बदसूरत हूं ना इसलिए नहीं ले जाते। शर्म महसूस होती है। पत्नी ने मन ही मन कहा।
दूसरी घटना-
- अरे बेटा। बहू को ले जाकर क्या करेगा? दोस्त के भाई की ही शादी है। तू ही चला जा।
-मगर पिताजी।
-बेटा, घर में भी बहुत काम रहता है। फिर आजकल तेरे पिताजी की तबीयत भी ठीक नहीं रहती। तू ही चला जा। मां ने कहा।
- मां, तुम तो जानती हो। इस समय बसों- ट्रेनों में कितनी भीड़ होती है। डेढ-दो घण्टे क्यू में लगो तो टिकट मिलता है। और इस भीषण गर्मी में डेढ-दो घण्टे..!
-तो इसमें बहू क्या करेगी? पिताजी संयत स्वर में खीझते हुए बोले।
-लेडिज़ क्यू में...।
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महाकुम्भ
-अपनी मां को कुम्भ के मेले में क्यूं नहीं ले जाते? पत्नी ने परम्परागत कारगर उपाय बताया।
-इतना लम्बा सफ़र मैं कैसे तय कर पाउंगी बेटा ? बुढ़ापे में शरीर भी तो साथ नहीं देता। मेले में भीड़ भी तो कितनी होती है। बेकार में तुम्हे दिक्कत होगी। तुम दोनों चले जाओ। शायद इस पुण्य से बहू की गोद हरी हो जाए।
- पर मां तुम अकेली कैसे रहोगी? बेटे ने फिक्र ज़ाहिर की।
-मेरी चिंता मत करों तुम लोग जाओ। मां ने मुस्कराकर कहा।
-चलो ये भी अच्छा हुआ। हमें आने-जाने में महीन-दो महीने तो लग ही जायेंगे। इतने समय में बुढ़िया सिधार जायेगी और गांव वाले क्रिया-क्रम भी कर देंगे। पत्नी ने दूसरा उपाय बताया।
दो-ढाई महीने बाद-
-अरे, बेटा ! तुम अकेले कैसे? बहू कहां है? मां ने आश्चर्य से पूछा।
बेटा सिर पकड़ कर बैठ गया और रोने लगा।
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ख़याल
मैं बाइक चला रहा था, वो पीछे बैठा था। सामने दो फ़ैशनेबल लड़कियां जा रही थीं। अपनी आदत के अनुसार वो आहें भरने लगा।-यार, क्या मस्त आइटम है। सॉलिड बॉडी, फिट कपड़े, लहराते बाल। चलने का स्टाइल तो देखो। और ये बाज़ू वाली लड़की। अबे देख। कितने मोटे-मोटे कूल्हे हैं। तू टच हो जाए तो... समझ निकल ही जाए।मैं बाइक चलाता हुआ चुपचाप बढ़ गया। उसने मुड़कर पीछे देखा और लगभग चीख-सा पड़ा-अरे!-क्या हुआ?-ये तो शालिनी है।-कौन शालिनी?-मॉय सिस्टर।... भुलक्कड़उनकी हदें बरदाश्त से बाहर हो रही थी। कोई भी चीज़ कहीं भी रखकर भूल जाते, फिर सारे कमरे में बड़बड़ाते हुए उसे ढूंढा करते। सारे सामानों को उथल-पुथल कर देते। बेटे-बहू ने कई बार ताक़ीद की -पिताजी अपनी चीज़े सम्भाल कर रखा कीजिए। आपका सारा वक़्त इन्हें ढूंढने में ज़ाया होता है। बच्चों की पढ़ाई भी नहीं हो पाती और हम भी चैन से सो नहीं पाते।-सॉरी, बेटा। आगे से ख़्ायाल रखूंगा। वो बड़ी सहजता से उत्तर देते लेकिन अगले दिन फिर वही सब कुछ।आखिर तंग आकर बेटे-बहू ने एक फ़ैसला कर ही लिया। सुबह टे्न का वक़्त हुआ जा रहा था और बेटे-बहू बड़बड़ाते हुए सारे सामानों को उथल-पुथल कर रहे थे।-क्या हुआ,बेटा।-पिताजी, ट्रेन के टिकट मिल नहीं रहे। कल यहीं तो रखे थे।-अपनी चीज़ें सम्भाल कर रखा करो बेटा।-सॉरी पिताजी, आगे से ख़्ायाल रखूंगा।---
मैं बाइक चला रहा था, वो पीछे बैठा था। सामने दो फ़ैशनेबल लड़कियां जा रही थीं। अपनी आदत के अनुसार वो आहें भरने लगा।
-यार, क्या मस्त आइटम है। सॉलिड बॉडी, फिट कपड़े, लहराते बाल। चलने का स्टाइल तो देखो। और ये बाज़ू वाली लड़की। अबे देख। कितने मोटे-मोटे कूल्हे हैं। तू टच हो जाए तो... समझ निकल ही जाए।
मैं बाइक चलाता हुआ चुपचाप बढ़ गया। उसने मुड़कर पीछे देखा और लगभग चीख-सा पड़ा-अरे!
-क्या हुआ?
-ये तो शालिनी है।
-कौन शालिनी?
-मॉय सिस्टर।
...
भुलक्कड़
उनकी हदें बरदाश्त से बाहर हो रही थी। कोई भी चीज़ कहीं भी रखकर भूल जाते, फिर सारे कमरे में बड़बड़ाते हुए उसे ढूंढा करते। सारे सामानों को उथल-पुथल कर देते। बेटे-बहू ने कई बार ताक़ीद की -पिताजी अपनी चीज़े सम्भाल कर रखा कीजिए। आपका सारा वक़्त इन्हें ढूंढने में ज़ाया होता है। बच्चों की पढ़ाई भी नहीं हो पाती और हम भी चैन से सो नहीं पाते।
-सॉरी, बेटा। आगे से ख़्ायाल रखूंगा। वो बड़ी सहजता से उत्तर देते लेकिन अगले दिन फिर वही सब कुछ।
आखिर तंग आकर बेटे-बहू ने एक फ़ैसला कर ही लिया। सुबह टे्न का वक़्त हुआ जा रहा था और बेटे-बहू बड़बड़ाते हुए सारे सामानों को उथल-पुथल कर रहे थे।
-क्या हुआ,बेटा।
-पिताजी, ट्रेन के टिकट मिल नहीं रहे। कल यहीं तो रखे थे।
-अपनी चीज़ें सम्भाल कर रखा करो बेटा।
-सॉरी पिताजी, आगे से ख़्ायाल रखूंगा।
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