5.6.10



        ग  ज़  

ग़म अगर दिल को मिला होता नहीं
ज़िंदगी में कुछ मज़ा होता नहीं


ज़ीस्त रह में है दिल तन्हा तो क्या
हर सफ़र में काफ़िला होता नहीं


हम सदा हालात को क्यों दोष दें
क्या कभी इंसा बुरा होता नहीं


मैं हमेशा साथ रहता हूँ तेरे
तू कभी मुझसे जुदा होता नहीं


एक इक पल बोझ-सा लगता है जब
जेब में पैसा-टका होता नहीं


सबकी आँखें पुरु कहाँ होती हैं नम
हर किसी दिल में ख़ुदा होता नहीं

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

aasha , nirasa aur vishwas ko aap ne khoob surati se abhivyakt kart hue apni baat kah gaye ,
हम सदा हालात को क्यों दोष दें
क्या कभी इंसा बुरा होता नहीं
puru jee aap ko ye sher nazar karta hoo jo mujhe pasand aaya,
sadhuwad

Shekhar Kumawat ने कहा…

bahut khub



फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

पुरु मालव जी
नमस्कार !
मरु गुलशन में आपका नाम पढ़ा याद है , अचानक आपका ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई ।

प्रस्तुत ग़ज़ल का मतला बहुत अच्छा है…
ग़म अगर दिल को मिला होता नहीं
ज़िंदगी में कुछ मज़ा होता नहीं


क्या ख़ूब शे'र कहा है …
हम सदा हालात को क्यों दोष दें
क्या कभी इंसा बुरा होता नहीं


…और क्या बात है …
सबकी आँखें पुरु कहाँ होती हैं नम
हर किसी दिल में ख़ुदा होता नहीं


सुभानल्लाह !
मतले से मक़्ते तक अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाई !

आपका भी शस्वरं पर स्वागत है , आइएगा…

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल है भाई...हर शेर पुख्ता और दमदार है...दाद कबूल फरमाएं

नीरज